आज दिल उनसे वो सब कहने को आतुर है,
जिसे भांपकर वो कहते हैं अभी थोड़ा जल्दबाजी होगा
फ़िर कल जब वो लौटकर आयेंगे और कहेंगे वही बात हमसे
तो शायद हम न कह दे की अब बहुत देर हो चुकी है
अब हम किसी और के हैं
आख़िर मेरा अपना भी एक अस्तित्व है
जैसे आज अपने हित में वो किसी की भावनाओं को दरकिनार कर सकते हैं
तो फ़िर मैं क्यों नही !!
पर शायद इसमें भी फर्क है
तब हम समय के बदलाव को स्वीकार करेंगे
और अभी उन्होंने समय की सच्चाई को नाकारा है
क्या उनका देरी से किया प्यार - प्यार है
और मेरा उसी दिल उसी चाहत से व्यक्त किया प्यार- प्यार नही है
फ़िर क्यों?
उनका बाद में हमारे नकारने पर आँसू बहाना भी
हमी को झकझोरता है रुलाता है
और आज हमारा उनका नकारे जाने पर
एक आस देके जाता है
और हम खुदको समझाने लगते हैं
की
रुक, थोड़ा तो थम॥
शायद अभी थोड़ा जल्दी है....
Wednesday, June 3, 2009
Tuesday, June 2, 2009
तन्हा-तन्हा इन रातों का,
एक नूर कहीं काफूर हो गया,
वादा था रात बिताने का साथ,
सपना ये नासूर बन गया
खुशियों में हम डूब चुके थे ,
ग़मों को सारे भूल चुके थे,
स्वर्णिम जीवन के आगमन का,
अहसास जहन में दाल चुके थे.
पर एक तरफा ये सोच थी शायद,
और शायद ही दिली -कवायद ,
की मैं गया था मोह्हबते -इकरार के लिए,
पर बिना फरमाए ही चला आया,
मैं ज़ारा -ज़ारा पुकारता रहा
वो बिना मुडे चलती गयी
काल्पनिक मिलन की वो रात,
दुखी वीर सी बीत गयी
एक नूर कहीं काफूर हो गया,
वादा था रात बिताने का साथ,
सपना ये नासूर बन गया
खुशियों में हम डूब चुके थे ,
ग़मों को सारे भूल चुके थे,
स्वर्णिम जीवन के आगमन का,
अहसास जहन में दाल चुके थे.
पर एक तरफा ये सोच थी शायद,
और शायद ही दिली -कवायद ,
की मैं गया था मोह्हबते -इकरार के लिए,
पर बिना फरमाए ही चला आया,
मैं ज़ारा -ज़ारा पुकारता रहा
वो बिना मुडे चलती गयी
काल्पनिक मिलन की वो रात,
दुखी वीर सी बीत गयी
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